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पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और 1977 का "उत्तर प्रदेश सहकारी समिति ( संशोधन) विधेयक 1977"

Updated: Aug 5, 2022

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के कई राजनीतिक किस्से मशहूर हैं। मुलायम सिंह ने छात्र नेता के रूप में अपने जीवन का सबसे पहला चुनाव लड़ा था। इसके बाद वह उत्तर प्रदेश के जसवंतनगर से विधायक बने और लगातार तीन बार विधायक रहने के बाद उन्हें पहली बार यूपी की जनता पार्टी की सरकार में मंत्री पद मिला। साल 1977 में उत्तर प्रदेश में हुए चुनाव के बाद सूबे में जनता पार्टी की सरकार बनी और मुख्यमंत्री पद पर बैठे राम नरेश यादव।


राम नरेश यादव की नजर पहली बार मुलायम सिंह यादव पर गई। मुलायम तीसरी बार जीतकर उत्तर प्रदेश की विधानसभा में पहुंचे थे। राम नरेश यादव की सरकार में मुलायम को सहकारिता और पशुपालन मंत्री बनाया गया। मुलायम सिंह को उस दौरान कोई गंभीरता से नहीं लेता था और उनके साथी जाति की तरफ इशारा करके कहते थे कि बचपन से जो काम करते आए हैं मंत्रालय भी वैसा ही थमा दिया गया है।

मुलायम सिंह यादव को इन तानों से कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह तो बस अपना काम ठीक से करना चाहते थे। उन्होंने इन तानों को अपनी ताकत बनाने का हुनर हासिल कर लिया।


सहकारिता मंत्री रहते हुए मुलायम सिंह यादव ने प्रथम बार विधान सभा द्वारा पारित विधेयक विधान परिषद में 12 अक्टूबर, 1977 को "उत्तर प्रदेश सहकारी समिति ( संशोधन) विधेयक 1977 " के नाम से पेश किया गया | माननीय मंत्री सरकार और विपक्ष मे बैठे माननीय सदस्य और विरोधी दल नेताओं के बीच बहसों का विवरण निम्नवत है -------------------


विधान परिषद् [20 आश्विन शक संवत् 1899 (12 अक्तूबर, सन् 1977 ई0) ]


उत्तर प्रदेश सहकारी समिति (संशोधन) विधेयक, 1977


श्री मुलायम सिंह यादव --------------------

माननीय अधिष्ठाता महोदय, मैं आपकी आज्ञा से प्रस्ताव करता हूं कि उत्तर प्रदेश सहकारी समिति (संशोधन) विधेयक, 1977, जैसा उत्तर प्रदेश विधान सभा द्वारा पारित हुआ, पर विचार किया जाय।


मान्यवर, हमारा देश कृषि प्रधान देश है और यह सर्वविदित है कि बिना सहकारिता के हमारे देश के किसानों, निर्बल वर्ग के लोगों तथा ग्रामीण क्षेत्रों का विकास सम्भव नहीं है। जब सहकारी आन्दोलन इतना महत्वपूर्ण है, तो उसके प्रति देश की जनता की आस्था तथा विश्वास होने की बहुत जरूरत है। पिछले 30 वर्षों में जो सहकारी आन्दोलन चला है, वह आन्दोलन कुछ निजी व्यक्तियों के स्वार्थों को लेकर अपनी सरकार को मजबूत करने के लिये , अपने दल को मजबूत करने के लिये चला है। तो इसमें इतना भ्रष्टाचार तथा भाई, भतीजावाद बढ़ा है कि इस के प्रति इस देश तथा प्रदेश की आस्था तथा विश्वास नहीं रहा। ऐसी परिस्थिति में जो विधेयक मै पेश कर रहा हूं, वह निजी स्वार्थों की धारणा को दूर करेगा और इस आन्दोलन के द्वारा जो लोग अब तक अपने निजी स्वार्थों को हल किया करते थे, उनको भी यह दूर करेगा।


दूसरी तरफ इस तरह के आन्दोलन के लिये, मैं समझता हूं, कि जो यह कहा जाता रहा है कि अब यह सहकारी आन्दोलन जन प्रतिनिधियों के हाथ में न रह कर, सरकारीकरण के हाथ में आ गया है, सरकारी कर्मचारियों के निहित चुगल में फंस गया है, तो उसे उस चंगुल से निकालने के लिये, यह सहकारिता का विधेयक आज इस सदन के सामने प्रस्तुत है।


मान्यवर, इसी आधार पर इस विधेयक की धारा 20 में यह संशोधन किया गया है कि इसके पश्चात् किसी सदस्य को बाकीदार नहीं समझा जायेगा, यदि वह उस धनराशि का, जिसका भुगतान न करने के कारण, बाकीदार हुआ हो। इसमें स्पष्टकर दिया गया है। इसी तरह इस विधेयक में यह संशोधन भी किया गया है जिससे सहकारी आन्दोलन के स्वरुप में तेजी आये और इसके लिये मण्डलों में जो विभिन्न समितियां है, तो उनमें प्रत्यक्ष रूप से तथा निष्पक्ष रूप से चुनाव करायें जायं जिससे कि यह वास्तविक रुप में जन आन्दोलन का रूप धारण कर सके । धारा 28 में इस तरह की व्यवस्था की गई है। ऐसे नियम और प्रतिनिधि एकता के रूप में उसके समक्ष आयें, इसके लिये संशोधन किया गया है। इस प्रकार के संशोधनों का उद्देश्य प्रस्तुत विधेयक में रखा गया है।

मान्यवर, हमारे इस सदन के सदस्य विद्वान और अनुभवी है, वह इस विधेयक के सम्बन्ध में अपने महत्वपूर्ण सुझाव देंगे, वे इस विधेयक का समर्थन करने की कृपा करें और सारे सदन से इसे पास करायें।


'श्री ब्रह्मदत्त विधन परिषद सदस्य ------------------------


मान्यवर, यह उत्तर प्रदेश सहकारी समिति (संशोधन) विधेयक, 1977, जो सदन में प्रस्तुत किया गया है, यह सारहीन है और इससे सहकारी समितियों में जो भ्रष्टाचार को समाप्त करने की बात कही गई है, तो सहकारी समितियों को जनता का सही प्रतिनिधित्व देने के लिये इसमें कोई व्यवस्था नहीं है। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि पहले सरकार को यह तय करना होगा कि संचालक मंडल किस तरह से कार्य करता है। आज जिस तरह से वर्तमान सरकार आचरण कर रही है, उससे मालूम होता है कि वह संचालक मंडल के बिल्कुल खिलाफ है। माननीय मंत्री जी यह बतला दें कि जो विभिन्न सहकारी समितियां उन्होंने निर्मित की है, उसके लिये क्या व्यवस्था की है, इसी से उनके दावे की बात खुल जाती है क्योंकि हर एक में उनके रिश्तेदार, विरादरी तथा दूसरे लोग सदस्य है घोर संचालक मंडल में इन लोगों को नियुक्ति किया गया है। जब तक वे इस तरह से काम करेंगे, तो वे लाख विधेयक ले आयें, उससे वे आप सहकारिता का उद्धार नहीं कर सकते हैं। या इसकी स्क्रूटनी की जरूरत है। अगर इस शासन के पास नैतिक साहस है तो वह लिस्ट सदन में उपलब्ध कराये कि जो नामिनेशन किये गये हैं, और दूसरे भ्रष्टाचार के मामले है, उनमें क्या होता है। मान्यवर, भ्रष्टाचार सबसे पहले इन गांवों की सहकारी समितियों में फैलता है या क्षेत्री सहकारी समितियां जिनको बोला जाता है, उनमें सबसे भ्रष्ट एन्टरी का सिस्टम है और इस तरह से ज्यादा भ्रष्टाचार फैलता है। लोगों को लोन नहीं दिये जाते है और गलत तरीके से लोन दिखाये जाते हैं, फर्जी वसूली की जाती है और दिखाई जाती है उसमें लोगों के कमीशन बंधे हुये होते हैं।


मान्यवर, मैं आपके माध्यम से कहना चाहता हूं कि इस प्रणाली को अंत्त करने की बात को कभी सरकार ने सोचा नहीं है लेकिन मेरा एक दूसरा आरोप है सरकार के ऊपर है कि सरकार 2, 3 महीने के दौरान में क्या कर चुकी है और मैं माननीय मंत्री जी को बताना चाहता हूं कि उनके द्वारा ही कितने सुपरवाइजर्स का ट्रांसफर किया गया है इस बात को दृष्टिकोण में रखते हुये कि किस सहकारी समिति में कितनी आमदनी है, किसमें आमदनी ज्यादा होती है, किस में कम होती है और मैं माननीय मंत्री जी को चुनौती देता हूं कि इस दो महीने के दौरान में लखनऊ में सहकारी समितियों में सुपरवाईजरों, सचिवों और असिस्टेन्ट रजिस्ट्रारों का ट्रान्सफर किया गया है जबकि सरकार की घोषित नीति है कि जून के बाद किसी के भी ट्रान्सफर नहीं किये जाने चाहिये और यह तमाम समाचार पत्रो में छपा है लोगों के पास सूचनायें आयीं है तो मेरा सरकार के ऊपर यह आरोप है कि किसी रिश्तेदारों के लिये या किसी और कारणों से तथा आर्थिक कारणों से भी ट्रान्सफर हुये हैं। इसलिये मेरा नम्र निवेदन है कि इस विधेयक से, जिसको कि इस नियत से लाये हैं कि सहकारी समितियों में व्यापक भ्रष्टाचार है, उसको समाप्त करना है तो अगर सहकारी समितियां इसका माध्यम बनती हैं तो इसके लिये उन बातों को दूर करना होगा, जो कि भ्रष्टाचार का कारण बनती हैं। सरकार का मनोनयन करना, सरकार द्वारा तबादिला करना, इन सब में सरकार को सही नियत से काम करना पड़ेगा। जब तक यह दोनों बातें होती हैं बिल से कुछ भी सुधार होने वाला नहीं है।


मान्यवर, में आपके माध्यम से कहना चाहता हूं कि बुराई तो पहले भी थीं लेकिन आज वह बुराई तिगुनी गति से इन सहकारी समितियों में बढ़ीं है और इसकी चर्चा आज सारे प्रदेश भर में है और अगर आवश्यकता होगी तो इसकी सूची भी उपलब्ध करा दूंगा लेकिन मान्यवर, आपने इसके द्वारा सहकारी समितियों में अगर आप का इरादा है कि सही तरीके से इनको जन आन्दोलन के तौर पर बनाना चाहते हैं तो मेरा निवेदन है कि इस दौरान में कितने जनता के लोगों को आपने मनोनीत किया है और इसका आधार भी बता दें जितने लोगों को आपने ट्रान्सफर किया है उसका आधार बता दें। अगर ऐसा नहीं करते हैं तो मैं समझता हूं कि बात कहने की और है और करने कीऔर है। इसके सम्बन्ध में व्याप्त असन्तोष सहकारी समितियों के कर्मचारियों में भी है कि जो लोग सिफारिश नहीं करा पाते हैं, जिनके पास साधन नहीं है, उनकी हकतलफी होती है। उनको इधर से उधर फेंका गया है और बहुत से लोगों को तो सूची से निकाल दिया गया है। बहुत से लोगों को रिश्तेदारी के आधार पर जो अच्छी अच्छी आमदनी की जगह है वहां पर रख दिया गया है और अगर इसी तरह से प्राचरण होता गया तो इन सहकारी समितियों का सुधार नहीं हो सकता है। यही बात बैंकों के डाइरेक्टर और संचालक मंडल के सदस्यों को नियुक्त करने की बात है। फेडरेशन को जिन चीजों में मनोनयन का अधिकार है, उन अधिकारों का खुला दुरुपयोग किया गया है यह मेरा इस सरकार पर आरोप है | मैं आपके माध्यम से निवेदन करूंगा कि एक दो चीजें संशोधन करने से पहले आपने----------


श्री दयानन्द व्यास (उत्तर प्रदेश विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र ) -----------------------

मान्यवर, व्यवस्था का प्रश्न है। माननीय नेता विरोधी दल को कहां से पता लगा कि कहां पर आमदनी होती है और किस आधार पर उनको पता चला है क्या उनके कोई अजीज वहां रह चुके हैं कि स्थानान्तरण इस आधार पर होता हैं।



श्री भोलादत्त पांडे (उत्तर प्रदेश विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र )


मान्यवर, में आपका बड़ा आभारी हूं कि आपने मुझे समय दिया। यथार्थ में सहकारिता एक जीवन प्रणाली है और समाजवाद का एक अंग है। इस छोटे से बिल में एक वाक्य लिखा है "सब्जेक्ट टु दि एप्रूवल ग्राफ दि रजिस्ट्रार ।" मै यह कहना चाहता हूं कि आज रजिस्ट्रार अपना काम भूल गये है। कहीं पर यह नहीं आया है कि रजिस्ट्रार का एक सिद्धान्त आडिट सुपरविजन एन्ड सजेशन होता है। आज रजिस्ट्रार का काम केवल मात्र यही रह गया है कि किस क्लर्क को कहां रखा जाय घोर किस इन्सपेक्टर को कहां पर रखा जाय और कहां पर फिट होगा। सहकारिता ईमानदारी की बात समझी जाती थी लेकिन आज सहकारिता सरकारी हो गई है। इससे तो अच्छा होता कि ब्लाक के माध्यम से ऋण दे दिया जाता और अच्छा होता कि सरकार अपने रुपये का कोई घोर चैनल ढूंढ लेती। असली तथ्य सहकारिता का यह है कि हम 100 -50 आदमी एक स्थान पर मिल कर अपनी मदद अपने आप कर लें। वह सिद्धान्त आज छोड़ दिया गया है। आज हम पूंजीवाद की बात करते हैं। रिजवं बैंक से रुपया 3 प्रतिशत व्याज की दर पर आता है और हमको 14 या अब एक प्रतिशत कम हो गया है 13 प्रतिशत पर दिया जाता है। अब बीच में कितने मालिक है। पहला तो स्टेट बैंक आफ इंडिया, दूसरा डिस्ट्रिक्ट कोग्रापरेटिव बैंक और उसके बाद डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव सोसाइटीज, तो इस तरह से सारा नफा यही बीच वाले कमा लेते हैं। मैं एक उदाहरण देना चाहता हूं कि हल्द्वानी में एक हमारी कोआपरेटिव सोसाइटी है उसका 84 हजार रुपया बैंकों में शेयर के रूप में लगा है। और वह सालाना 12 आना सैकड़ा उस पर देते है और हमसे 11 प्रतिशत लेते हैं। अब कभी यह जन्म भर वह सोसाइटी सेल्फ सपोटिंग नहीं हो पायेगी। हमारा सारा रुपया शेयर के रूप में वहां पर लग जाता है और जिसे हम किसी अन्य बिजनेस में भी लगा सकते हैं। उस 12 आने प्रति सैकड़े से अधिक पैसा हमको वहां से मिल सकता है यह स्थिति आज सहकारिता की बनती है। कोई सरकारी अधिकारी सचिव नहीं हो सकता है और जो रजिस्ट्रार कहेगा वही सचिव होगा। आप रूल्स प्रिस्क्राइब कर दीजिए। डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव बैंक के जो सचिव हमारे थे उनका ट्रांसफर हुआ। एक कमेटी यहां पर बनी हुई है, लखनऊ के स्तर पर, उसके द्वारा वह होता है। आज वह अपनी नौकरी को ठीक नहीं समझते हैं। सरविस तो उनकी डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव बैंक नैनीताल में है और उसका ट्रांसफर यहां लखनऊ में होगा। एक बड़ी विचित्र बात है कि किसी भी डिवीजन में जितनी भी कमिश्नरी लेविल के आदमियों के ट्रांसफर की बात है, वह कहीं और सिवाय कमिश्नरी लेविल के और कहीं नहीं होता है। पब्लिक सरविस कमीशन के अन्दर कभी पब्लिक सरविस कमीशन किसी का ट्रांसफर नहीं करता है और वह स्वयं सरकार ही करती है। लेकिन हमारे यहां कर्मचारियों और यहां तक कि चपरासी तक का एप्वाइंटमेंट और ट्रांसफर यहां पर ही होगा। मैं नहीं समझता हूँ कि जितने भी कानून सहकारिता के अन्दर आ गये है उनमें से अगर मॅनेजमेंट को माइनस कर दिया जाय तो कौन सा काम रुकने वाला है। हर क्लाज में लिखा है "सब्जेक्ट टु दि एप्रूवल ग्राफ दि रजिस्ट्रार । आज चेरयरमैन भी नामिनेट होता है, कहीं पर, इसमें यह चीज नहीं है। सरकार शेयर्स खरीदती है और यह होता है कि अगर इतने प्रतिशत शेयर्स हो जाते है तो सरकार के चेयरमैन को भी नामिनेट करने के हो जाते हैं ।


श्री मुनि देव

(मुरादाबाद, स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्र)


मान्यवर, यों तो सहकारिता के दोनों पहलू पर मुझसे पूर्ववक्ता विचार व्यक्त कर चुके है लेकिन केवल दो बातों को मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं। एक बात तो यह है कि ट्रांसफर ऐन्ट्री के सभी लोग जानते हैं कि रुपया दे दिया जाता है और ट्रांसफर इन्ट्री के जरिये से लिखत पढ़त हो जाती है। मान्यवर, रुपया देने का ध्येय तो यह होता है कि कोआपरेटिव रुपया बढ़ेगा जिससे उद्योग धंधे चलेंगे अन्य सुविधा मिलेगी लेकिन हकीकत यह है कि वह रुपया न बंटता है लेकिन न वसूल होता है। जब तक यह प्रथा रहेगी कोई बड़ा काम हो सकेगा इसमे सन्देह है।


श्री दयानन्द व्यास- ----------


माननीय अधिष्ठाता ,महोदय, माननीय ध्रुव नारायण सिंह वर्मा जी ने मेरे ऊपर यह इलजाम लगाया है कि हम जनता पार्टी के सदस्य नहीं बोलते हैं और इसके लिये हम लोगों ने मौनवृत्त धारण कर लिया है लेकिन यह उनका भ्रम है।


हम लोग लोकतंत्र पर विश्वास करते हैं और हमेशा किया है, जनता पार्टी लोकतंत्र को हामी है, उससे पहले लोकतंत्र जिस के चंगुल में फंसी थी, पहले कांग्रेस के चंगुल में फंसी थी, जिसमें लोकतंत्र त्राहि-त्राहि कर रही थी, मानवता भटक रही थी, मैं भी उनके साथ था, इसमें कोई शक नहीं है लेकिन उस हद तक मैं उसका गुनहगार हूं, मैं उससे अपने को बचाने की कोशिश नहीं करता मैं उनके साथ बेशक था लेकिन इस बात के आप साक्षी है, हमारे सदन की प्रोसीडिंग साक्षी है, सदन की कार्यवाही मेरी गवाह है, मैंने उस समय भी उनके साथ बैठ कर भी उनको मुखालिफत की और सच्चीबात का इजहार किया और इसीलिये मै आपके माध्यम से कहना चाहता हूं कि वह उपलब्धियां, जो उनको मिली हैं, मैं उनसे वंचित रहा, यह भी वे जानते हैं । मैं तो जब खरी बात करता हूं तो उनको वह बुरी लगती है और वे मुझे विषय के विपरीत करने की कोशिश करते हैं ।


"गैर अफसाना सुनाते रहे तो हंस हंस के सुना,

वाक्या हमने सुनाया तो बुरा मान गए ।"


श्री मुलायम सिंह यादव---------------


माननीय अधिष्ठाता महोदय, विपक्ष और पक्ष के दोनों माननीय सदस्यों ने इस विधेयक पर महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं और कुछ आगे करने के लिये भी उत्साह बढ़ाया है, इसके लिये में बहुत ही प्रभारी हूं । परन्तु गैर-जिम्मेदारी की जितनी बातें नेता विरोधी दल ने कहीं, ऐसा किसी ने भी नहीं कहा और भी माननीय सदस्यों ने बातें कही है लेकिन नेता विरोधी दल ने यह कहा कि जितने तबादले सुपरवाइजर्स के हुए हैं वह जातिवाद, भाई-भतीजावाद या पक्षपातपूर्ण ढंग के आधार पर हुए हैं, तो मैं माननीय नेता सदन को बता देना चाहता हूं कि अगरे एक भी उदाहरण अगर वह दे दे, तो मैं जानूं। जितने भी ट्रान्सफर सुपरवाइजर के है वह नियमों के अन्तर्गत हुए हैं। एक सुपरवाइजर 6 साल तक अगर एक जिले में रह चुका है, उसको उस जिले में नहीं रहने दिया गया है, उसका स्थानान्तरण कर दिया गया है। दूसरी चीज यह है कि अगर उसका गृह-जनपद हैं तो उसको जिले में नहीं रहने दिया गया है। इसके अतिरिक्त और तिकड़में चलती थी । अगर किसी तरह से एक जिले में 6 साल रह गया, उसने अपने सम्बन्ध बना लिये, रिश्तेदारी कर ली, मकान बनवा लिया और उसके बाद 6 महीने या एक साल के लिये दूसरे जिले में चला जाता था और माननीय अधिष्ठाता महोदय, फिर वह तिकड़म करके उसी जिले में आ जाता था । रोक लगा दी गई है जो जिस जिले में रह चुका है फिर उस जिले में वापिस नहीं इस पर भी जायगा। हो सकता है दो-एक जगह कहीं इस तरह की कमी हो, लेकिन जैसे हो मुझे उन कमियों का पता चलता है मैं उनको दूर करता हूं और इसके अतिरिक्त कुछ शिकायतों के आधार पर ट्रान्सफर हुए हैं, इसके अलावा इस तरह का कोई ट्रांसफर नहीं हुआ जैसा माननीय नेता विरोधी दल ने कहा है।


दूसरी बात जो उन्होंने कही लखनऊ की कही। मान्यवर, मैंने लखनऊ मण्डल के सारे माननीय सदस्यों की बैठक बुलाई और कोआपरेटिव विभाग से संबंधित कुछ सुझाव मांगे। उन्होंने बताया कि दो सुपरवाइजर लखनऊ जिले में ऐसे हैं जो 16-15 वर्षों से लगातार रह रहे हैं और दूसरे जिलों में एक साल या 6 महीने के लिये हो सकता है रह आये हों, परन्तु उसके बाद तुरन्त ट्रांसफर करके वापिस आ गये ।


माननीय अधिष्ठाता महोदय वह दो सुपरवाइजर्स से कोई मामूली सुपरवाइजर नहीं है। उन दो सुपरवाइजरों को बहुत सी शिकायतें हैं और लाखों रुपयों के गवन का आरोप है। उनके विरुद्ध जांच चल रही है और उन्होंने अपने को बचाने के लिये पिछली सरकार के मंत्री की साजिश से उन फाइलों को भी गायब करा दिया, उनका पता नहीं चलने दिया। फाइलों का पता ही नहीं है। तो माननीय अधिष्ठाता, वह दो सुपरवाइजर इस तरह के हैं। इसके अतिरिक्त मै कहना चाहूंगा, मान्यवर, कि सुपरवाइजर के ट्रांसफर्स में किसी प्रकार का कोई पक्षपात नहीं हुआ है।


तीसरी माननीय अधिष्ठाता जी, जो उन्होंने कही नामीनेशन की कही। इतना कम नामीनेशन,अगर आप देखें, तो पिछले 30 सालों में कभी नहीं हुआ। नामीनेशन जो किया गया है वह प्रजातन्त्रीय आधार पर किया गया है। मान्यवर, एक उदाहरण देना चाहता हूं और कहना चाहता हूं कि इससे ज्यादा प्रजातंत्रीय और क्या हो सकता है। वर्तमान सरकार ने पी०सी०एफ० के प्रेसीडेन्ट को, जैसा पिछली सरकार नामीनेट करती थी, वैसा न करके, वहां के प्रेसीडेंट को इलेक्टेड बनाया। इससे ज्यादा और क्या सबूत हो सकता है। किसी अपनी पार्टी के साथी को ओबलाइज कर सकता था, उसको अध्यक्ष बनवा मैं भी सकता था और सारी सुविधायें दिलवा सकता था, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया ।


श्री मुलायम सिंह यादव-------


अब जो पी0 सी0 एफ० का अध्यक्ष हुआ है वह संचालक मण्डल के द्वारा चुना हुआ है । ऐसा कांग्रेस सरकार ने कभी नहीं किया।


चौथी बात जो कही है कि यह महत्वहीन है। मान्यवर, चुनाव कराना ही महत्व हीन है तो क्या बात हो सकती है। यह विधेयक लाया जा रहा है वह चुनाव कराने के लिये ही लाया जा रहा है। मान्यवर, ऐसे ऐसे जिले हैं जहां 11/12 साल से अभी तक चुनाव ही नहीं हुए और उसको रोकने के लिये जहां तक रजिस्ट्रार की बात कही है तो प्रतिबन्ध लगाया गया है कि उस को कोई नहीं रोक सकेगा । चुनाव हो जाता था लेकिन उस की गिनती नहीं हो पाती थी । उसको रोक दिया जाता था। इसमें कहा गया है कि चुनाव के बाद उसके रोकने के लिये न्यायालय के दरवाजे खुले हुए हैं लेकिन इस की गिनती को जिस तरह से पहले रोक दिया जाता था उस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। जैसे बकायेदारी की बात है। जैसा हमारे अग्रवाल साहब ने वतलाया है कि पहले यह होता था कि अच्छे आदमी को वहां पर सुपरवाइजर और कोआपरेटर की तिकड़म से नहीं आने दिया जाता था। उस पर 1 रुपया या 12 आने की बकायेदारी दिखला दी और वह नहीं आ पाता था। इसमें कहा गया है कि अन्तिम रूप से जो चुनाव की सूची बनेगी उस दिन तक बकाया दे दें तो वह चुनाव भी लड़ सकता है और वोट भी दे सकता है। इस में पहले कोई ऐसा प्राविजन नहीं था। पता ही नहीं चलता था कि कितनी बकायेदारी है । 6 महीने पहले किसी ने बकायेदारी दे भी दी तब पर भी उसको अधिकार नहीं था। लेकिन अब उसको खत्म किया गया है और चुनाव सूची के अन्तिम रूप बनने तक उसने बकाया दे दिया तो वह चुनाव लड़ सकता है और वोट दे सकता है।


जैसा माननीय ध्रुव नारायण सिंह जी ने कहा कि पिछले मन्त्री जी ने कहा कि नियमावली में सुधार किया जायगा। मैं ऐसा नहीं कहता । हम जो कहते है उसको करते भी हैं। वह सरकार जो चली गई है मुंह से कहती थी और हम दिल से कहते हैं। हम महिलाओं और हरिजनों को संरक्षण देंगे । आपने अखबारों में पढ़ा होगा और विधान सभा में भी इसकी घोषणा की गयी है कि गोदामों की व्यवस्था न्याय पंचायतों के स्तर पर की जा रही है। वहां पर हम इस समय 1500 गोदाम बनायेंगे । ये जो खाद के गोदाम जो होंगे वहां पर ऋण के वितरण की भी व्यवस्था होगी। अगले साल इसी प्रकार के 4 हजार गोदाम बनाने का लक्ष्य है जिन पर 20 करोड़ रुपये खर्च होने की आशा है। इससे गांव गांव तक सहकारिता को ले जाने की व्यवस्था है ।


मेरे मित्र ने कहा कि एक ईमानदार आफिसर ने कुछ गड़बड़ियां पकड़ी थीं तो पिछली सरकार ने उस को दंडित किया था। अगर माननीय सदस्य मेरे नोटिस में लायेंगे तो उस के साथ अब ज्यादती नहीं होने पायेगी और जो ज्यादती हुई है, उन्हें ठीक किया जायेगा । जो चारों तरफ से सुझाव आये हैं, तो मैं मानता हूं कि इस सहकारिता आन्दोलन में गड़बड़ियां हैं। मैं मानता हूं कि इस ऐक्ट में भी गड़बड़ी है। यह चुनाव कराने के लिये उपयुक्त नहीं है। मैं चाहूंगा कि सारे के सारे ऐक्ट पर पुनः विचार किया जाय। लेकिन जो हमने चुनाव के लिये 6 महीने का समय मांगा है, उसके लिये आप की स्वीकृति चाहिये। नवम्बर में चुनाव होने वाले हैं और 6 महीने में सारे प्रदेश में हम चुनाव पूर्ण कर देंगे। सरकार ने निश्चय कर लिया है कि पहले जो समूह के आधार पर चुनाव होता था तो जो तिकड़म करने वाले लोग थे वे सुपरवाइजर से मिलकर तय कर लेते थे कि कौन सेक्रेटरी और कौन मन्त्री हो जायेगा और वे आप को डाइरेक्टर तक नहीं होने देते थे। यह सरकार उस पर विचार कर रही है और इसके लिये नियमावली में संशोधन करेगी। कभी तो वह अपनी सुविधा के अनुसार कर लेते थे, कभी क्रम संख्या के आधार पर यदि लाभ हो तो उससे कर लेते थे, कभी दूसरी तरह से लाभ हो, तो उसके आधार पर कर लेते थे । हम नियमावली में संशोधन करेंगे कि हर सदस्य, जो 20 रुपये का हिस्सेदार है, उसे वोट देने का अधिकार रहेगा । इससे बहुत लाभ होगा और जो इस समय तक तिकड़म बाजी और साजिश से काम करते थे और इस तरह से उसमें घुस आते थे तो वह नहीं आने पायेंगे क्योंकि ग्राम जनता के द्वारा यह चुनाव होगा, उनको वोट देने का अधिकार रहेगा, इसलिये इस तरह की कोई गुंजाइस नहीं रहेगी । इससे ज्यादा लोकतंत्र स्वरूप देने की बात इसके अलावा दूसरी नहीं है । मैं मानता हूं कि पूरे ऐक्ट में कुछ कमियां और खामियां हैं, लेकिन यह सारी कमियां त्रुटियां और खामियां इन तीन महीनों में ही हो गई हों, यह बात नहीं है । यह सारा कूड़ा करकट पिछले 30 सालों का इकट्ठा हो गया था । अगर लखनऊ में इस तरह से इतने वर्षों का कूड़ा इकट्ठा हो जाय और सौ, डेढ़ सौ सफाई करने वाले लोग ही हों, तब भी उसे साफ करने में काफी समय लग जायगा, वह तीन महीने क्या, तीन साल में भी उसे साफ नहीं कर सकते हैं । फिर तीन महीनों में यह साफ हो जायगा, आप इस तरह की आशा कैसे करते हैं इसमें समय लगेगा माननीय नेता विरोधी दल ने करेप्शन की बात कही और कहा कि इसमें बहुत करेप्शन है। नेता विरोधी दल चले गये हैं, उनको बैठना चाहिये था, लेकिन मै उनसे कहना चाहता हूं कि हमारी सरकार ने यह निश्चय किया है कि वह करेप्शन को समाप्त करेगी करेप्शन ऊपर से शुरू होता है हम मानते हैं कि भ्रष्टाचार ऊपर से शुरू होकर नीचे की तरफ जाता है। बड़े बड़े लोग जो गबन करने वाले थे, जिन्होंने गबन किया है, सरकार ने उनके विरुद्ध कार्यवाही की है। 71 गवन के केसेज हमने छाटे हैं, जल्दी से जल्दी उनको तय करेंगे। 1 महीने के अन्दर जो 71 केसेज है, उनमें से 54 को सजा हुई है, यह एक लाख रुपये से ऊपर के गबन के केसेज है और 17 कैसेज 50 हजार से 99 हजार तक के गबन के हैं । हम इन सब के विरुद्ध कार्यवाही कर रहे हैं। मैं आश्वासन देता हूं सदन में, चाहे जितना बड़ा और प्रभावशाली व्यक्ति हो, हम उनके खिलाफ कार्यवाही करेंगे, हम किसी भी केस को रुपये के बल पर या किसी दबाव के कारण, नहीं दबायेंगे ।


श्री मुलायम सिंह यादव --------------------


हमने 28 केसेज में अदालतों में चार्ज शीट लगा दी है। इस तरह से 71 केसेज में 8 करोड़ रुपये का गवन था। इसमें से 2 करोड़ रुपया हमारा वसूल हो गया है। भ्रष्टाचार की जो समस्यायें हैं, यह सब बड़े लोगों पर बनती है, जिन्होंने लाखों रुपये का गबन किया है। हम उन सब के खिलाफ कार्यवाही कर रहे हैं। यह जरूर है कि सौ, दो सौ रुपये वाले जो गबन के केसेज थे, उन लोगों को पिछली सरकार ने पकड़ा था, बन्द किया था, लेकिन उन्होंने किसी भी एक लाख रुपये वाले को नहीं पकड़ा और बन्द किया। सौ दो सौ वाले जो थे, उनको उन्होंने गिरफ्तार किया, लेकिन जो लाखों वाले थे, उनको गिरफ्तार नहीं किया। इस तरह से आज जो भ्रष्टाचार की बात करते हैं बड़े बड़े उद्योगपति, विरला तथा टाटा के जो लोग हैं, जनता सरकार ने उनके खिलाफ भी कार्यवाही शुरू कर दी ,जनता सरकार ने बिरला के खिलाफ वारेन्ट जारी किया है। पिछली सरकार ने बड़े-बड़े उद्योगपतियों के विरुद्ध क्या किया।

जहां तक माननीय सदस्य ने कहा है कि करेप्शन है, तो उन सब का सत्यापन हो रहा है। यह सब वैरीफिकेशन 30 नवम्बर तक हो जायगा। मै सारे माननीय सदस्यों से अनुरोध करता हूं और प्रार्थना करना चाहता हूं कि इस वैरिफिकेशन में वह जरूर सहयोग दें क्योंकि अगर यह ठीक न किया जायगा तो मैं इस बात को मानता हूं कि सहकारी आदोलन से जनता की आस्था और विश्वास उठ जायगा, इसलिये यह जो प्रयास हो रहा है। उसमें माननीय सदस्य सहयोग अवश्य दें।

पहली सितम्बर से 30 नवम्बर तक इन तीन महीनों में सत्यापन होगा और इस दरमियान यह निश्चय किया गया है जो मूलधन होगा उसके दूने से ज्यादा व्याज नहीं लगाया जायगा और इस बीच में जो बकायादार या किसान अपना रुपया दे दें, उसे 10 परसेन्ट की जगह उससे 5 परसेन्ट लिया जायगा । यह भी निश्चय किया गया है कि मौके पर अधिकारी जायेंगे और देखेंगे कि कहीं पर फर्जी तरीके से रुपया तो नहीं लिखा हुआ है और मगर ऐसे मामलात सामने जायेंगे तो उसको वहीं पर समाप्त किया जायगा इस तरह से कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है। माननीय सदस्यों ने जो सुझाव दिये हैं मैं मानता हूं कि कुछ कमियां होंगी उसके लिये मेरे मन में खुद यह बात है। कि एक पूरा विस्तृत ऐक्ट सहकारी प्रान्दोलन के लिये सदन में लाने के लिये आवश्यकता है और उस पर विचार कर लिया जायगा, इस बात के लिये मैं तैयार हूं और इस सम्बन्ध में हमारे जितने भी पार्टी के लोग हैं, चाहे कांग्रेस वाले हों, कम्युनिस्ट पार्टी के हों और चाहे किसी भी दल का हो, सबको आमन्त्रित करूंगा और सब मिल करके अपने सुझाव जो देंगे, उसके अनुरूप विधेयक को रूप दिया जायगा इस समय तो केवल चुनाव करने के लिये यह छोटा सा सशोधन किया जा रहा है माननीय सदस्यों ने अपने सुझाव दिये हैं, इसके लिये मै उसका आभारी हूं और उन्हें धन्यवाद देना चाहता हूँ । इस समय इसको सर्वसम्मति से सदन पास करे, यही मेरा अनुरोध है ।


श्रोत- उत्तर प्रदेश राज्य अभिलेखागार पुस्तकालय लखनऊ|


लेखक-शिवकुमार शौर्य (संस्कृति विभाग लखनऊ)


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