Jyoti Singh (student of journalism at DU)

Apr 29, 20214 min

कोरोना बनाम राजनीति, इस बिच चरमराती स्वास्थ सेवाएं

Updated: Aug 5, 2022

दिल्ली अभी तक दुनिया की सबसे अधिक प्रदूषण वाली राजधानी थी.... पर आज कल यह प्रदूषण नही.... लाशों का जलता धुआ है। महसूस करने की कोशिश करना एक अजीब सी गंध है, जो झकझोर देती है।

जब भी टीवी पर न्यूज़ चैनल देखती हूं.... तो सांस लेने में दिक्कत होने लगती है, घबराहट होती है..... कि देश में यह चल क्या रहा है?

दिल्ली अभी तक दुनिया की सबसे अधिक प्रदूषण वाली राजधानी थी.... पर आज कल यह प्रदूषण नही.... लाशों का जलता धुआ है। महसूस करने की कोशिश करना एक अजीब सी गंध है, जो झकझोर देती है। श्मशान में जगह ना होने का कारण शवों को कहीं भी एकांत में जलाया जा रहा है। अस्पताल में जितने लंबी लाइन है.... उतनी ही लंबी लाइन श्मशान में हैं।

देश में भयावक स्थिति है, आदमी ने पूरी जिंदगी कमाया और अंत में उसे दफन के लिए 2 गज जमीन भी नहीं मिली।

देश में बहुत बड़ा संकट है, युद्ध जैसे हालात घोषित कर दिए गए हैं। हर कहीं चीख है.... आंसू है... दिल दहला देने वाली परिस्थिति हैं। इतने सबके बावजूद सरकार चुनावों को करा रही है... लोगों की जिंदगी से खेल कर... क्या यही है लोकतंत्र ? अब तक लोकतंत्र को मैंने 'लोगों द्वारा लोगों के लिए बनी सरकार समझा था' पर लोगों की जान पर खेलकर ‘सरकार’ यह तो अजीब है... न्यायालय इस मुद्दे पर शांत क्यों है? क्या यह 'जीवन का अधिकार' जो कि 'मूल अधिकार' है... उसका उल्लंघन नहीं ? तो न्यायालय इस मुद्दे पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है ?

कहीं कुंभ का मेला चला... तो कहीं भव्य रैलियां। इन जहर फैलाने वालों पर क्यों कार्रवाई नहीं की गई ?

अभी तक लोग रोजगार, गरीबी से परेशान थे कि... आज लोग सांसो के लिए तड़प रहे हैं। गरीबों पर यह दोहरी मार है।

भविष्य में बहुत बड़े संकट के यह सब सचेत है , अगर सरकार ने सही कदम नहीं उठाए तो.... लोग रोटी के लिए भी तरस जाएंगे।

हर जलती चिता के साथ लोगों का आत्मविश्वास भी कम हो रहा है। लोगों का भरोसा खत्म हो गया है कि सरकार उनके लिए कुछ करेगी।

लोग अपने प्रियजनों को खो रहे हैं, और बहुत से खो चुके हैं। अभी तक आपने मृतक के परिवार वालों को छोटी मोटी झड़प करते सुना या देखा होगा। अगर यह सिलसिला यूं ही चलता रहा तो हिंसा होने के खतरे भी भड़ जाएंगे। वह देश प्रेम की माला जिसमें अभी तक सब बंदे थे, आज कमजोर सी नजर आने लगी है... क्योंकि देश की सरकार अपने नागरिकों की जान तक की रक्षा नहीं कर पा रही है।

हमने वोट देकर उन लोगों को कुर्सी पर बैठाया था... इसलिए कि वह संकट के समाये मे ऑक्सीजन सिलिंडर और दवाइयों की जमाखोरी करें। अगर अमेरिका जैसा देश अपने नागरिकों को मुफ्त में वैक्सीन दे सकता है.... तो भारत में क्यों नहीं ?

अब आप सरकार के विरुद्ध कुछ बोल भी नहीं सकते ... क्योंकि वह कब आपको देशद्रोही बना दे.... आपको पता भी नहीं चलेगा। हाल ही में 27 अप्रैल को यूपी के ससंक यादव को ट्विटर पर ऑक्सीजन सप्लाई और राज्य सरकार के विरुद्ध बोलने पर धारा 151 (1) (बी ) और महामारी रोग अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर लिया गया है। क्या यही है 'अभिव्यक्ति की आजादी' ?

बीच में कोविड-19 के मरीजों की संख्या में गिरावट आई थी, सरकार ने उस समय स्वास्थ्य सुविधाओं पर ध्यान नहीं दिया। सरकार ने अस्पतालों की जगह नए संसद को ज्यादा प्राथमिकता दी, जिसके लिए 971 करोड़ खर्च का अनुमान लगाया गया।

इतने पैसे में न जाने कितने अस्पताल बनते…. और लोग अपने घरों में मरने के लिए मजबूर ना होते।

गलती सिर्फ सरकार की नहीं नागरिकों की भी है। जिन्होंने कभी प्रशन नहीं उठाए ... जिन्होंने उठाए तो उनका कभी साथ नहीं दिया। वह मंदिरों के लिए लड़े ...मस्जिदों के लिए लड़े ...पर कभी अस्पतालों और अच्छे स्वास्थ्य सेवाओं के लिए लड़े ? न्यायालय ने पूर्व के विषय पर भी फैसला किया था ,आज इतने लोगों की जान जा रही है। इसका जिम्मेदार कौन है ? क्या न्यायालय इस पर फैसला करेगी? दोषियों को सजा मिलेगी ?

आंकड़े और नई रिसर्च का कहना है कि भारत गरीब देश की श्रेणी में शामिल होने की कगार पर है.... जिस देश में युवा पहले से ही बेरोजगार है, जो टि्वटर और सोशल मीडिया पर प्रदर्शन करते रहते हैं... किसान सड़कों पर है... डॉक्टर, शिक्षक और सरकारी कर्मचारी आये दिन सैलरी ना मिलने की वजह से हड़ताल पर होते है , महिला सुरक्षा के लिए प्रदर्शन करती रहती हैं, गरीब मूलभूत सेवाओं के लिए लड़ रहे है और... आंकड़े कहते हैं कि… गरीबी आना अभी बाकी है... अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि देश किस ओर जा रहा है ?

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