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मैं कुछ नहीं जानता , बस ! मेरे लिए बनारस हो तुम...

Updated: Aug 5, 2022

गंगा की कल कल धाराओं में तुम,सुगंध भरी हवाओं में तुम l

तुम ही हो मेरी अस्सी घाट , उस दरिया बीच नौकाओं में तुम

शाम ढले जब घाट अस्सी पे, वैसा दिव्य स्वर्ण रूप हो तुम l

सुबह खिले जब गलियां गूंजे, चहूंओर दिखे वह धूप हो तुम।

तुम रविदास कबीर की कुटिया, तुम बिस्मिल्ला की शहनाई हो।

तुम शिक्षा का विशाल मंदिर तुम विश्वनाथ की अंगनाई हो।

मुंगा पुखराज नहीं मानता ! मेरे लिए पारस हो तुम।

मैं कुछ नहीं जानता, बस ! मेरे लिए बनारस हो तुम...

तुम ही वह कुल्हड़ की चाय, जिसे देख अंदर मन ललचाय।

दूध, मट्ठा और मक्खन तुम, मन भरे ना चाहे हिक भर खाय।

रसभरी भोजपुरी बोली हो तुम , नागा, शैवों की झोली हो तुम

शंभू जिसे अपने ललाट लगाएं, तुम चंदन वह रोली हो तुम।

तुम बनारसी पान गजब की, तुम बनारसी शान गजब की।

देश दुनिया में मान बढावे, तुम हो वह स्वाभिमान गजब की।

तुझमें है एक बडी महानता, श्याम के लिए सारस हो तुम

मैं कुछ नहीं जानता, बस ! मेरे लिए बनारस हो तुम...


~ श्याम श्रवण


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